पहले 5 चरणों में ही बन गई थी भाजपा सरकार: बाकी 2 चरणों की सीटें तो बोनस थीं; जहां सबसे ज्यादा चुनौती मानी जा रही थी, वहां भी सपा से दोगुनी सीट

UP के मतदाताओं ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि उनके मिजाज को भांपना बड़े-बड़े सियासी दिग्गजों के भी बस की बात नहीं। आखिरी चरण तक न केवल उन्होंने भाजपा का कड़ा इम्तिहान लिया, बल्कि समाजवादी पार्टी को भी उम्मीदें बंधाए रखी। इस पूरे चुनाव की खासियत यही रही कि पार्टियां और उनके नेता मुखर रहे, लेकिन मतदाता की चुप्पी EVM तक पहुंचने में कायम रही। वोटर्स ने अपना निर्णय EVM के जरिए ही सुनाया।

हले चरण से सातवें चरण तक मतदाताओं का यही अंदाज रहा। शुरुआती दो चरणों में साल 2017 के मुकाबले घटे मतदान प्रतिशत को देखकर राजनीतिक विश्लेषक भी सिर्फ कयास ही लगाते नजर आए, लेकिन अगले तीन चरणों में मतदाता फिर घर से निकले और पांच साल पहले वाले प्रदर्शन को दोहरा दिया। छठे चरण तक उसकी यह स्पीड बनी रही।

सातवें चरण में फिर 2% गिरा मतदान चौंकाने वाला था। पश्चिम से पूर्वांचल तक और अवध से बुंदेलखंड तक एक जैसा जनादेश। लगभग पांच साल पहले वाली ही कहानी। भास्कर ने सभी 403 सीटों पर मतदाताओं के इस मूड को समझने के लिए सीट वाइज मतदान प्रतिशत और नतीजों का विश्लेषण किया।

पढ़िए, हर चरण में मतदाताओं के अपने उम्मीदवारों को हीरो बनाने और कई दिग्गजों को नकारने की ये कहानी…

पहला चरण : कुल सीट 58
भाजपा गठबंधन- 46
सपा गठबंधन- 12
1.32% कम मतदान, भाजपा को 5 सीट का नुकसान, सपा को 10 का फायदा
भाजपा के लिए इस चरण में चुनौती इसलिए रही क्योंकि 2017 में इन्हीं 11 जिलों की 58 सीटों में से उसने 53 सीटें जीती थीं। बसपा और सपा में 2-2 सीट चली गई थीं। एक सीट रालोद ने जीती थी। पिछले साल इसी पश्चिम में भाजपा का सूर्य उगा था। इस बार किसान आंदोलन और साइकिल-हैंडपंप के गठजोड़ ने उसकी राह मुश्किल कर दी। सियासी हवा बदलते देख साल 2017 के मुकाबले यहां 1.32% कम मतदाता घर से बाहर निकला। मेरठ, शामली, बागपत, मुजफ्फरनगर में भाजपा को इसकी कीमत चुकानी पड़ी। सपा गठबंधन को यहां 10 सीटों का फायदा हुआ, लेकिन बुलंदशहर में ही मतदाताओं ने गठबंधन को नकार दिया। बृजक्षेत्र के आगरा, अलीगढ़ व मथुरा के मतदाता भाजपा के साथ ही डटे रहे। इन चार जिलों में किसी दूसरी पार्टी का खाता भी नहीं खुला।

दूसरा चरण : कुल सीट 55
भाजपा गठबंधन- 27
सपा गठबंधन- 28
भाजपा को सबसे ज्यादा 11 सीटों का नुकसान, सपा को 13 सीटों का फायदा
2017 के मुकाबले भाजपा को सबसे ज्यादा 11 सीटों का नुकसान दूसरे चरण में ही हुआ। पश्चिम की हवा का असर बना रहा। भाजपा ने 2017 में 55 में से 38 सीटें यहां जीती थीं, जबकि सपा 15 सीटों पर ही सिमट गई थी।
इस बार भाजपा 27 तो सपा 28 सीटों तक पहुंच गई। 2017 से 1.13% कम पड़े वोटों ने भाजपा का गणित बिगाड़ा। सपा यहां अपने वोटर को बूथ तक पहुंचाने में कामयाब हुई। भाजपा ने चुनावी रण के हर चरण में कई जिलों में क्लीन स्वीप किया, लेकिन दूसरा चरण ही ऐसा रहा जहां वो ये कारनामा नहीं दिखा सकी। मुरादाबाद में 6 में से उसे सिर्फ 1, संभल में 4 में से 1 सीट मिली और अमरोहा में भी यही हाल रहा। रामपुर में तो उसका खाता ही नहीं खुला। बरेली, सहारनपुर और शाहजहांपुर के मतदाताओं ने भाजपा को यहां टक्कर में बनाए रखा।

तीसरा चरण : कुल सीटें 59
भाजपा गठबंधन- 44
सपा गठबंधन- 15

करहल से अखिलेश लड़े, लेकिन अपने गढ़ की 2 सीटों को भाजपा में जाने से नहीं रोक सके
सपा के पास वापस अपने गढ़ में साइकिल का वर्चस्व हासिल करने के साथ ही बुंदेलखंड में अपनी जड़ें जमाने की चुनौती थी। मैनपुरी, इटावा, एटा, कन्नौज में ग्राउंड पर पूरा माहौल सपा के पक्ष में दिख रहा था, लेकिन यहां 2017 के 62.21% मतदान के मुकाबले महज 0.07% बढ़त ने चुनावी नतीजे बदल दिए। भाजपा को पिछली 49 सीटों के मुकाबले यहां 5 सीटों का नुकसान जरूर हुआ। वहीं सपा भी 8 सीटों से बढ़कर 15 तक पहुंच गई। कासगंज, फर्रुखाबाद, कन्नौज और कानपुर देहात में मतदाताओं ने सिर्फ भाजपा पर विश्वास जताया। मैनपुरी में करहल सीट से अखिलेश खुद मैदान में थे, लेकिन वह भी जिले की 2 सीटों को भाजपा के खाते में जाने से नहीं रोक पाए।

चौथा चरण : कुल सीट- 59
भाजपा गठबंधन- 49
सपा गठबंधन- 10

लखीमपुर खीरी और उन्नाव कांड को भूले मतदाता, भाजपा का सत्ता में वापसी का आधार
साल 2017 में 9 जिलों की इन 59 सीटों में से भाजपा ने 50 सीटों पर परचम लहराकर बड़ी जीत हासिल की थी। सपा यहां महज 4 सीट पर सिमटकर रह गई। सपा को इस चुनाव में महज 6 सीटों का ही फायदा हुआ, जबकि भाजपा को 2 सीटों का नुकसान। 2017 में इन 9 जिलों में 62.55% मतदान हुआ था। वहीं इस बार 62.76% मतदाताओं ने वोट डाले।

भाजपा ने इस बार राजधानी और सेंट्रल जोन पर अपने पिछले प्रदर्शन को दोहराने के लिए पूरी ताकत लगाई। सपा यहां पिछड़ गई। लखनऊ की 9 सीटों में भाजपा ने पिछले चुनाव में 8 सीटें जीती थीं, वहीं मोहनलालगंज की सीट सपा के कब्जे में आई। चौथे चरण में सबकी निगाहें लखीमपुर खीरी और उन्नाव पर थीं। खीरी में किसानों पर गाड़ी चढ़ाने का मामला हो या उन्नाव का रेप कांड, मतदाताओं ने इसे भुला दिया। दोनों ही जगह किसी दूसरी पार्टी का खाता नहीं खुल सका।

पांचवां चरण : कुल सीट 61
भाजपा- 40
सपा- 18
कांग्रेस- 1
जनसत्ता दल- 2

अयोध्या में सपा की ताकत 3 गुना बढ़ी
पांचवें चरण में 61 सीटों पर 12 जिलों के मतदाताओं ने लगभग 2017 जैसे ही मतदान के आंकड़े तो दोहराए, लेकिन नतीजे बदल दिए। राम मंदिर का मुद्दा इस बार भी मतदाताओं के जेहन में तो था, लेकिन सपा ने फिर भी इस चरण में अपनी सीटें 5 से बढ़ाकर 18 तक पहुंचाने में कामयाबी हासिल कर ली। वहीं भाजपा को यहां 10 सीटों का नुकसान हुआ। 2017 में भाजपा ने यहां 50 सीटें जीती थीं, जबकि सपा को 5 तक सीमित कर सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था। सुल्तानपुर में सभी पांच सीटें भाजपा के खाते में गईं, तो प्रयागराज में 12 में से 9 सीटें मिलीं। पांचवां चरण इस मायने में महत्वपूर्ण रहा कि भाजपा ने यहां तक पहुंचते-पहुंचते ही बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया।

छठा चरण : कुल सीट- 57
भाजपा- 40
सपा- 15
कांग्रेस- 1
बसपा- 1

सपा 2 से 15 सीटों पर पहुंची तो भाजपा 46 से 40 पर
छठे चरण में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने न केवल अपने गढ़ गोरखपुर को बचाने में कामयाबी हासिल की, बल्कि भाजपा को सत्ता तक पहुंचा दिया। छठे चरण में भी मतदाताओं ने लगभग 2017 जितने ही वोट डाले, लेकिन महज 0.11 फीसदी के अंतर ने सीटों में उलटफेर की कहानी रच दी। साल 2017 में भाजपा ने यहां 46 सीटें जीती थीं, जो इस बार 40 पर ही रह गईं। वहीं, सपा 2 सीटों से बढ़कर 15 तक पहुंच गई। पांच साल पहले बसपा ने यहां 5 सीटें जीती थीं, जो इस चुनाव में महज 1 ही रह गई। योगी के गढ़ गोरखपुर की सभी 9 सीटें भाजपा के खाते में दर्ज हुईं। कुशीनगर और देवरिया में भी ऐसे ही नतीजे रहे।

सातवां चरण : कुल सीट- 54
भाजपा- 26
सपा- 28

सपा को सबसे ज्यादा 17 सीटों का फायदा, बसपा को भारी नुकसान
इस बार UP रण की खासियत यह रही कि सातवें चरण तक मतदाताओं ने सपा की उम्मीदों को भी जिंदा रखा। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद भाजपा को लग रहा था कि पूर्वांचल में वे बाबा विश्वनाथ के नाम पर मतदाताओं को अपने साथ ले लेंगे, लेकिन रेलवे भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी के आरोप के बाद बेरोजगारों के उग्र आंदोलन ने मुश्किलें खड़ी कर दीं। भाजपा के साथ ही सभी दलों ने यहां पूरी ताकत लगा दी थी। भाजपा को फिर भी 10 सीट का नुकसान उठाना पड़ा, तो सपा यहां 2017 की 11 सीटों के मुकाबले 28 तक पहुंच गई। आजमगढ़ में सभी 10 सीटें जीतकर उसने क्लीन स्वीप किया। हालांकि, वाराणसी में प्रचार के अंतिम दिन सपा प्रमुख के रोड शो के बावजूद पार्टी यहां खाता भी नहीं खोल पाई। वाराणसी की सभी 8 सीटें भाजपा के खाते में गईं। सोनभद्र और मिर्जापुर में भी यही कहानी रही।