योगी की जीत से ज्यादा केशव की हार के चर्चे: घटेगा कद या मंत्रिमंडल में फिर होंगे शामिल? अतिउत्साह और अखिलेश पर हमलावर होना हार की बड़ी वजह

यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत मिलने के बाद जश्न का माहौल है। लेकिन डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का हारना भाजपा पचा नहीं पा रही है। सपा गठबंधन की उम्मीदवार पल्लवी पटेल से मात खाने की चर्चा जोरों पर हैं। यही नहीं योगी की जीत से ज्यादा केशव की हार के चर्चे हो रहे हैं।

एक के बाद एक ट्वीट किए

यूपी में पार्टी की जीत पर केशव प्रसाद मौर्य ने पोस्ट किया। कहा, ‘सिराथू विधानसभा क्षेत्र की जनता के फैसले को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करता हूं, एक-एक कार्यकर्ता के परिश्रम के लिए आभारी हूं, जिन मतदाताओं ने वोट रूपी आशीर्वाद दिया उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं’।

केशव प्रसाद मौर्य ने आगे लिखा, ‘सभी समर्थकों मित्रों शुभचिंतकों के प्रति आभार प्रकट करता हूं, जिन्होंने दिन रात परिश्रम करके चुनाव में सहयोग किया है, हम सभी के लिए खुशी की बात है कि प्रदेश के साथ चारों राज्यों में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की नीतियों के कारण फिर से भाजपा की सरकार बन रही है’।

एक अन्य ट्वीट में केशव ने लिखा, ‘मा. प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में गरीब कल्याण की योजनाओं को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में पांच साल में गरीबों तक सफलतापूर्वक पहुंचाने का काम किया, मुझे विश्वास है योगी जी के नेतृत्व में बनने वाली सरकार में भी गरीब कल्याण का यज्ञ जारी रहेगा!’

क्या मंत्रिमंडल में होंगे शामिल?

भाजपा के स्टार प्रचारक होने के नाते केशव पर यूपी में भाजपा उम्मीदवारों को जिताने का बड़ा जिम्मा था, लेकिन वह अपने जिले की तीन सीटों में चायल और मंझनपुर सीट को जिताना तो दूर, सिराथू में खुद ही चुनाव हार गए। केशव मौर्य के हारने के बाद अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या वह योगी मंत्रिमंडल में शामिल होंगे।

बता दें कि योगी सरकार केशव प्रसाद मौर्य को एमएलसी बनाकर मंत्रिमंडल में शामिल कर सकती है। लोगों का कहना है कि केशव भले ही चुनाव में हार गए, लेकिन पार्टी में मजबूत पकड़ उनकी राह में रोड़ा नहीं बनेगी। योगी सरकार में उन्हें जरूर कोई न कोई बड़ा पद मिल सकता है।

वहीं, चुनाव परिणाम के बाद भाजपा की हार पर भी मंथन हो रहा है। माना जा रहा है कि शीतला प्रसाद पटेल का टिकट कटने से पटेल वोट भाजपा से नाराज हो गया, जिसका खामियाजा केशव को चुकाना पड़ा।

केशव की हार के 5 कारण

  • केशव अपनी सीट पर ध्यान नहीं दे पाए केशव। यहां तक मतदान के दिन भी केशव अन्य प्रत्याशियों के लिए प्रचार में लगे हुए थे।
  • केशव ने जहां भी प्रचार किया वहां अखिलेश यादव पर जमकर हमला किया। बताया जा रहा है कि इसी के चलते सपा समर्थक सिराथू में एकजुट हुए और उनके खिलाफ वोट किया।
  • केशव जनता से दूर रहे। लोगों के मन में यह आ गया कि केशव को यदि वह चुनते भी हैं तो वह उनके बीच नहीं रहेंगे।
  • अखिलेश यादव ने अपनी पूरी ताकत का प्रदर्शन सिराथू विधानसभा सीट पर किया। बीजेपी का कोई नेता यहां प्रचार के लिए पहुंचा था।
  • सिराथू में केशव की पत्नी और कार्यकर्ताओं ने प्रचार की कमान संभाली थी। लेकिन, यहां उनका अतिउत्साह ही हार का कारण बना।

अब बात करते हैं केशव के राजनीतिक सफर की…

  • केशव प्रसाद मौर्य बचपन में सुबह अखबार बेचते फिर पिता श्यामलाल के साथ चाय बेचने में सहयोग भी करते थे।
  • अखबार बेचने के साथ-साथ बचपन से ही संघ की शाखाओं में जाना शुरू कर दिया था।
  • अशोक सिंघल ने विश्व हिंदू परिषद में काम करने का मौका दिया।
  • लगभग 20 वर्षों तक विश्व हिंदू परिषद में काम करने के दौरान श्री राम जन्मभूमि आंदोलन में भी भाग लिया।
  • केशव मौर्य ने 12 साल तक परिवार से कोई रिश्ता नहीं रखा, क्योंकि परिवार को उनका शाखा में जाना पसंद नहीं था।
  • राजनीति में आने के बाद केशव ने पहला चुनाव 2004 में बाहुबली अतीक अहमद के प्रभाव वाली सीट इलाहाबाद पश्चिम से लड़ा।
  • साल 2004 और 2007 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद केशव ने 2012 के चुनाव में कौशांबी की सिराथू सीट से किस्मत आजमाई और उन्होंने इस सीट पर पहली बार कमल भी खिलाया।
  • 2014 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और फूलपुर से सांसद भी बने। उसके बाद प्रदेश में पार्टी अध्यक्ष के तौर पर काम किया।
  • केशव मौर्य की कुशल संगठनात्मक क्षमता ही थी कि प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए सारी पिछड़ों जातियों को भाजपा की तरफ लामबंद किया और 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा को प्रदेश में बंपर जीत हासिल हुई थी।